उड़न सिख मिल्खा सिंह की दिली इच्छा है कि उ के जीते जी कोई भारतीय ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीते। हालांकि वे समय समय पर भारतीय एथलेटिक में सुधार का राग अलापते रहते हैं लेकिन पिछले सौ सालों में एक भी एथलीट ओलंपिक में खाता नहीं खोल पाया। यही कारण है कि अब उड़न सिख की बात को गंभीरता से नहीं लिया जाता। 1995 में उन्होंने घोषणा की थी कि जो भारतीय उनके रोम ओलंपिक में बनाए 400 मीटर के रिकार्ड को तोड़ेगा, उसे 5 लाख इनाम देंगे। तीन साल बाद पंजाब के परमिंदर ने यह कर दिखाया पर मिल्खा जी ने अपना वादा पूरा नहीं किया। अगर मगर और बहानेबाजी कर परमिंदर के प्रदर्शन को कमतर करने का दुखद बहाना बनाया, जिस कारण से उन्हें जगहंसाई का पात्र भी बनना पड़ा था। तब से एथलेटिक से जुड़े लोग उनकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। खासकर, ऐसा इसलिए क्योंकि अपने खेल के विकास में उन्होंने कोई बड़ा योगदान शायद ही कभी दिया हो।
रोम ओलंपिक में चौथा स्थान मिलने पर उन्हें सिर आंखों बैठाया गया। एशिया और कामनवेल्थ खेलों के स्वर्ण ने उनका कद कुछ और बढ़ाया लेकिन देश के एथलीट और कोच उनसे कम ही प्रभावित रहे। कारण, उन्होंने खेल के उत्थान की बजाय एथलेटिक फेडरेशन और उभरते एथलीटों का मनोबल तोड़ने वाले बयान ज्यादा दिए और फेडरेशन से उनकी कभी नहीं पटी।
खेल जानकार और विशेषज्ञों की मानें तो ओलंपिक में चौथा स्थान पाने वाले जिन खिलाड़ियों ने सबसे ज्यादा लोकप्रयिता पाई, सुविधाओं का सुखभोग किया उनमें मिल्खा और दीपा करमारकर सबसे भाग्यशाली रहे हैं। खासकर, दीपा बिना कुछ किए धरे ही सब कुछ पा गईं। जानकारों की राय में ऐसा इसलिए है क्योंकि खेलों में हम कोई हैसियत नहीं बना पाए। ऐसे में छोटी छोटी सफलता।पाने वाले सितारे बन जाते हैं और तमाम सुविधाओं पर हाथ साफ करने में कामयाब हो जाते हैं।
मिल्खा गरीब और साधारण परिवार से थे। भारतीय फौज के इस एथलीट को सेना ने प्रोत्साहन दिया और वह ओलंपिक तक जा पहुंचे। लेकिन सेना और पंजाब के खेल विभाग से रिटायर होने के बाद उन्होंने सिर्फ उपदेशक की भूमिका निभाई। कुछ पूर्व एथलीटों के अनुसार यदि उन्होंने भावी खिलाड़ियों को सिखाया पढ़ाया होता और उन्हें प्रदर्शन में सुधार की तजबीज सिखाई होती तो भारत को कुछ और अच्छे एथलीट मिल जाते।
पंजाब के खेल निदेशक के पद पर रहते उन पर कुछ आरोप भी लगे जोकि बाद में भुला दिए गए। उन पर बनी फिल्म पर भी उंगली उठी। मिल्खा भारतीय एथलेटिक की हालत से भली भांति परिचित हैं। उन्हें पता है कि देश में एक भी एथलीट ऐसा नहीं जोकि ओलंपिक गोल्ड जीतने का दम रखता हो।
Rajender Sajwan
Senior, Sports Journalist