एक देशव्यापी सर्वे से पता चला है कि अपने देश में ओलंम्पिक खेलों के मैदान लगातर घट रहे हैं और क्रिकेट मैदान तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। विभिन्न प्रदेशों की राज्य ओलंम्पिक इकाइयों, खेल संघों और खासकर खेल पत्रकारों द्वारा दी गई जानकारी से पता चलता है कि पिछले तीस सालों में जहां एक ओर अन्य खेलों के मैदान घट रहे हैं तो क्रिकेट के मैदान लगातार बढ़ रहे हैं।
हालांकि शुरुआती विरोध के बाद अब ओलंम्पिक खेलों और उनके खैर ख़्वाहों ने क्रिकेट की दास्तान कुबूल ली है लेकिन जिस रफ्तार से क्रिकेट अतिक्रमण कर रही है उसे देखते हुए अन्य खेलों के लिए खेलने की जगह और स्टेडियमों का अकाल पड़ चुका है।
यह सही है कि क्रिकेट ने पिछले कुछ सालों में तेज रफ्तार प्रगति की है। दूसरी तरफ बाकी खेल अपने आपस के झगड़ों और समस्याओं से जूझते रहे। बाकी खेल हर छोटी बड़ी समस्या और सुविधा के लिए सरकार का मुंह ताकते रहे हैं, जबकि क्रिकेट ने अपने दम पर आगे का रास्ता चुना और लगातार आगे बढ़ी है। नतीजन क्रिकेट आम भारतीय का पसंदीदा खेल बन गया और अन्य खेल उसे कोसते रह गए।
सर्वे में यह बात भी निकल कर आई है कि क्रिकेट को जहां एक ओर खाली पड़े खेत खलिहानों कोअपने लिए इस्तेमाल करने में कामयाबी मिली तो बाकी खेल अपने मैदान और पार्क तक नहीं बचा पाए। एक रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली,मुम्बई, बंगलोर, चेन्नई, कोलकाता आदि बड़े शहरों में ही नहीं, गांव,कस्बों में भी क्रिकेट पूरी तरह छा गया है।
ऐसा इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि देश का कुलीन वर्ग पूरी तरह क्रिकेट की गिरफ्त में हैं। बड़े छोटे अधिकारी क्रिकेट से जुड़े हैं और क्रिकेट के बड़े नाम दाम वालों के इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हैं। उनका दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि हॉकी, फुटबाल और अन्य खेलों के मैदानों के ठेके भी क्रिकेट खिलाड़ियों और कोचों को दिए जा रहे हैं। हैरानी वाली बात यह है कि अपने मैदान और स्टेडियम बर्बाद होते देख कर भी ज्यादातर खेल और उनके कर्णधार मूक दर्शक बने हुए है। स्थिति इस कदर विस्फोटक हो चुकी है कि कई शहरों में एक खेल के हिस्से एक स्टेडियम भी नहीं आता।
दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, केरल, यूपी,एमपी में ही नहीं मणिपुर,मेघालय, असम, उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में भी ओलंम्पिक खेलों के मैदान और स्टेडियम लुप्त होते जा रहेहैं और उनके स्थान पर क्रिकेट ने मजबूती से पांव जमा लिए हैं। यह संतुलन सचमुच भयावह है। लेकिन बाकी खेलों, खेल संघों और प्रदेश एवम केंद की सरकारों को जैसे कोई लेना देना नहीं है। शायद वे किसी बड़े धमाके को बुलावा दे रहे हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |