राष्ट्रीय खेल : पदक बिकते हैं खरीदने वाला चाहिए

Taekwondo

उत्तराखंड की मेजबानी में आयोजन 38वें राष्ट्रीय खेलों की तायक्वांडो स्पर्धा में चल रही फिक्सिंग को लेकर भारतीय खेल जगत सन्न रह गया है। आरोप है कि 16 भार वर्गों में से दस में परिणाम पहले से फिक्स हो चुके थे। यह हैरानी वाली खबर जरूर है लेकिन मार्शल आर्ट्स खेलों में कभी भी कुछ भी हो सकता है, ऐसा माना जाता है। गनीमत यह है कि आयोजकों को पहले ही इस बारे में जानकारी मिल गई थी। अत: समय रहते प्रतियोगिता के निदेशक को बदल दिया गया। भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) की अध्यक्ष पीटी उषा भी यह जानकार हैरान है कि कैसे खेल शुरू होने से पहले ही रिजल्ट तय कर दिए गए।

बेशक, राष्ट्रीय खेलों के आयोजक और खासकर तायक्वांडो और अन्य मार्शल आर्ट्स खेलों से जुड़े अधिकारी डरे हुए और हैरान-परेशान हैं, क्योंकि अन्य खेलों पर भी उंगली उठ सकती है। जहां तक तायक्वांडो की बात है तो पिछले तीस सालों से यह खेल लगातार विवादों में रहा है। खिलाड़ियों के चयन में धांधली, अलग-अलग गुटों द्वारा खेल कब्जाने के दावे और पदकों की खरीद फरोख्त के आरोप हमेशा से लगते आए हैं।

तायक्वांडो को भारत में लोकप्रिय बनाने वाले जिमी जगतियानी, इशारी के गणेश, नामदेव और प्रभाष शर्मा देश में इस खेल के गॉड फादर होने का दावा करते आए हैं। ये चार चतुर अपने-अपने तरीके से भारतीय ओलम्पिक संघ को बरगलाते आ रहे हैं। हैरानी वाली बात यह है कि सालों से चल रहे मार्शल आर्ट्स खेलों के विवाद सुलझाए नहीं सुलझ पा रहे हैं। आरोप यह भी लगाया जाता है कि खेल मंत्रालय और आईओए इनके झूठ की चपेट में आकर खेल से खिलवाड़ कर रहे हैं। चूंकि वर्ल्ड बॉडी भी गुटबाजी की शिकार है इसलिए तायक्वांडो, कराटे और तमाम मार्शल आर्ट्स खेल पनप नहीं पा रहे हैं।

जहां तक राष्ट्रीय खेलों में पदक की खरीद फरोख्त की बात है तो ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पदक विजेताओं को कुछ राज्य सरकारें पांच से दस लाख रुपये देती है। कुछ प्रदेशों में नौकरियां भी मिल रही है, जिसके लिए तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। लेकिन राष्ट्रीय खेलों में फिक्सिंग का मामला बताता है कि हमारे खेल आका किस कदर भ्रष्ट हो गए हैं।

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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