किसी भी विद्यार्थी या ख़िलाड़ी को बनाने संवारने में गुरु, उस्ताद या शिक्षक की भूमिका का बड़ा महत्व होता है। शायद इसी लिए गुरु या शिक्षक को राष्ट्र निर्माता भी कहा जाता है और गुरु को भगवान का का दर्जा दिया गया है। लेकिन कथनी और करनी में बड़ा फर्क है। हमारा समाज गुरुओं को क्या दे रहा है, यह उन बीपीएड , एमपीएड और उच्च शिक्षा प्राप्त शिक्षकोँ से पूछा जा सकता है, जिन्हें समाज और शिक्षा व्यवस्था ने पूरी तरह खारिज क़र दिया है।
यूँ तो सरकारें देशवासियों को फिट और हिट बनाने के लिए तमाम नारे दे रही हैं, खेलो इंडिया का नारा उछाला जा रहा है लेकिन उस शारीरिक शिक्षक की तरफ किसी का ध्यान नहीं है जिसके हाथों देश के खेल भविष्य की बुनियाद रखी जाती है। हालाँकि देश की सरकारें सभी प्रदेशों में शारीरिक शिक्षा को प्रोत्साहन देने की बात करती हैं लेकिन शिक्षकों के प्रोत्साहन और जीवन यापन के लिए सरकारों के पास कोई योजना नहीं है। नतीजन हजारों-लाखों योग्य शिक्षक या तो बेरोजगार है या कुछ एक सौ प्रतिदिन की दिहाड़ी पर काम कर रहे हैं।
एक सर्वे से पता चला है कि जम्मू कश्मीर में बहुत से शिक्षक सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से देश के भविष्य को सिखा पढ़ा रहे हैं। उन्हें पत्थर तोड़ने और मैला साफ करने वालों से भी कम मजदूरी दी जा रही है। योग्य नागरिक और चैंपियन खिलाड़ी पैदा करने का दावा करने वाली बिहार सरकार 8 हजार महीने, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारें 11 हजार महीने और इसी प्रकार राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल , मध्य प्रदेश और तमाम सरकारें देश के बच्चों का भविष्य बनाने वाले शिक्षण का शोषण कर रही हैं।
हालांकि शारीरिक शिक्षा किसी खिलाड़ी का पहला सबक है और यह माना जाता है कि जो खिलाड़ी फिट होगा वही हिट होगा। लेकिन भारतीय खेलों को जैसे शारीरिक शिक्षा से कोई लेना देना ही नहीं है।
एक जमाना था जब देश के सभी स्कूलों का पहला सबक व्यायाम और पीटी के साथ शुरू होता था। धीरे धीरे यह परम्परा समाप्त सी होती जा रही है। हैरानी वाली बात यह है कि बहुत से स्कूलों में शारीरिक शिक्षा जैसे विषय का महत्व ही समाप्त होता जा रहा है। यह हाल तब है जबकि शरीरिक शिक्षा को अन्य विषयों की तरह का दर्जा दिए जाने का नारा बुलंद किया जा रहा है।
शरीरिक शिक्षा के प्रति रुझान में कमी का बड़ा कारण यह है कि देश भर के स्कूलों में नियुक्त शिक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। उन्हें अन्य शिक्षकों की तुलना में कमतर आंका जाता है। कोरोना काल के चलते हजारों ऐसे शिक्षक बेरोजगार हो गए। भविष्य में भी उनकी हालत में सुधार की संभावना कम ही नजर आती है, क्योंकि सरकारों की नीयत में खोट है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |