“संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैम्पियनशिप में दिल्ली को अपनी मेजबानी में आगे बढ़ने का मौका था जिसका फायदा उठाने में इसलिए सफलता नहीं मिली क्योंकि पेनल्टी किक निशाने पर नहीं रही”, हार के बाद कुछ इस प्रकार की सफाई दी जा रही है। पेनल्टी चूकने वाले खिलाडी को कम अनुभवी बताया जा रहा है। एक और उलाहना यह दिया जा रहा है कि दिल्ली के एक ही क्लब के अधिकाधिक खिलाडियों से टीम का गठन और कुछ कलबों की अनदेखी भी हार का कारण रही है। सीधा सा मतलब है कि हार के बाद चयन समिति पर निशाना साधा जा रहा है।
पिछले अनुभव के आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली ने जब कभी संतोष ट्राफी में भाग लिया, खिलाडियों के चयन में पक्षपात के आरोप लगे। शायद ही कभी ऐसा मौका आया हो जब दिल्ली साकर एसोसिएशन के पदाधिकारियों और चयन समिति पर उंगली न उठाई गई हो। बेशक, ऐसा होता रहा है। दर्जनों ऐसे खिलाडी भी संतोष ट्राफी में खेल गए जिन्हें किसी फिसड्डी क्लब में भी स्थान नहीं मिलना चाहिए था। लेकिन जहां तक वर्तमान टीम की बात है तो कुल मिला कर टीम संतुलित थी और कमसे कम पहले ग्यारह खिलाडियों पर उंगली उठाना न्यासंगत नहीं होगा। फुटबाल प्रेमियों ने मैच का खूब लुत्फ उठाया लेकिन अपनी टीम की हार से मायूस हुए।
यह सही है कि बेंच स्ट्रेंथ को देखते हुए मेजबान के पास कोई करिश्मा कर दिखाने वाले खिलाडी नहीं थे। जहाँ तक एक नये खिलाडी को निर्णायक अवसर पर पेनल्टी मारने के लिए भेजने की बात है तो यह फैसला इसलिए गलत बताया जा रहा है क्योंकि गोल चूक गया लेकिन प्रयास बुरा नहीं था। बस आलोचकों को मौका मिल गया। लेकिन पंजाब ने तो कम से कम आधा दर्जन साफ़ गोल जमाने के मौके बर्बाद किए। सच तो यह है कि आखिरी दस मिनट को छोड़ पूरे खेल में पंजाब ने खेल पर पकड़ बनाए रखी। उसने गोल जमाने के कई मौकों पर गलत निशाने लगाए।
जहाँ तक दिल्ली की चूक कि बात है तो उसे शुरू से ही आल आउट नहीं खेलने का खामियाजा भरना पड़ा है। पंजाब पूरे खेल में हावी रही उसके तेज तरार फारवर्ड के सामने मेजबान रक्षा पंक्ति बार बार लड़खड़ाई और अंततः गोल खा बैठी। हालाँकि ड्रा से भी दिल्ली का काम बन सकता था, जोकि तमाम कोशिशों के बाद भी संभव नहीं हो पाया। हार के बाद आरोप प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया है। कोई रक्षा पंक्ति को कोस रहा है तो कोई कह रहा है कि टीम के चयन में धांधली हुई है। पता नहीं चयन समिति से कहाँ चूक हुई लेकिन ऐसे मौके आने ही नहीं चाहिए जबकि चयनकर्ताओं पर ऊँगली उठे। उनका सम्बन्ध किसी क्लब विशेष या अकादमी से नहीं होना चाहिए, जैसे कि आरोप लगाए जा रहे हैं। डीएसए अध्यक्ष शाजी प्रभाकरन टीम के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं लेकिन यह भी मानते हैं कि ऐसे मौके बार बार नहीं आते, जैसा दिल्ली चूक गई।
खैर, आरोप हमेशा से लगते आ रहे हैं। चुनी गई टीम पूरी तरह संतुलित थी। युवा और उभरते खिलाडियों कि टीम ने बहुत कुछ सीखा है और यह अनुभव आगे उनके काम आएगा। इस बार उनके पास पंजाब की कोई काट नहीं थी क्योंकि पंजाब हमेशा से दिल्ली पर भारी रही है और उसने शुरू से आखिर तक अपनी ख्याति के अनुरूप प्रदर्शन किया। बेहतर होगा दिल्ली अब उन खिलाडियों, कोचों और अधिकारीयों कोमौका दे जो सच मुच श्रेष्ठ हैं। फुटबॉल का कारोबार करने वालों को चयन समिति से दूर रखनेमें ही भलाई है।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |