आगे का सफर कठिन लेकिन रोमांचक हो सकता है – सुधांशु मित्तल

Lal Krishna Advani 2025 01 21T193727.304

खो खो वर्ल्ड कप धूम धड़ाके औऱ ऊँचे मानदंडों के साथ निपट गया है। देश-विदेश के खिलाड़ियों, अधिकारियों और खेल को पसंद करने वालों ने शायद इस प्रकार का आयोजन पहले कभी नहीं देखा होगा। आयोजकों की माने तो खो-खो को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मान्यता दिलाने के लिए अब उनका असली अभियान शुरू होगा।
अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय खो खो फेडरेशन के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल के अनुसार, उनका लक्ष्य अब खेल को एशियाड और ओलम्पिक में स्थान दिलाने का रहेगा। लेकिन आगे का सफर इतना आसान नहीं है। कारण खो खो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी अपनी सदस्यता बढ़ानी होगी। खासकर, यूरोप और अमेरिकी जोन के देशों को यह समझाने की जरूरत है कि खो खो न सिर्फ खेल हैं अपितु तमाम खेलों की जननी है। हालांकि अब तक एथलेटिक्स को यह श्रेय दिया जाता रहा है।
जहां तक एशियाई देशों की बात है तो बांग्लादेश, श्रीलंका, दक्षिण कोरिया, पाकिस्तान, भूटान, ईरान के अलावा चीन, जापान और पूर्व सोवियत देशों को जोड़ने के बाद इस खेल की रौनक बढ़ जाएगी और एशियाड एवं ओलम्पिक का रास्ता साफ हो सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पहले वर्ल्ड कप का सफल आयोजन भारतीय खो खो फेडरेशन और विश्व फेडरेशन के अध्यक्ष सुधांशु मित्तल के प्रयासों और उनके टीम वर्क का फल है। लेकिन अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है। बेशक भारतीय फेडरेशन की टीम में महासचिव एमएस त्यागी जैसे कर्मठ लोग है, जिनके दम पर यह खेल दुनियाभर में पहचान बना पाया है l
देखना यह होगा कि खो खो कब तक अन्य मान्यता प्राप्त खेलों की श्रेणी में स्थान बना पाएगा। पहले वर्ल्ड कप के सफल आयोजन के बाद खो खो प्रेमियों और खिलाड़ियों की उम्मीदें जरूर बढ़ गई होंगी लेकिन सही मायने में खेल का विस्तार और प्रचार-प्रसार तब ही होगा, जब किसी अन्य देश में पहले से बेहतर वर्ल्ड कप आयोजित किया जाएगा और यह एशियाड और ओलम्पिक का हिस्सा बन पाएगा। सुधांशु मित्तल के अनुसार दूसरा विश्व कप बर्मिंघम में तय हुआ है l वे यह भी मानते हैँ कि सदस्य देशों ने खेल को गंभीरता से लिया तो आगे का सफर रोमांचक होने के साथ साथ कठिन भी हो सकता है l

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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