हाल ही में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने 162 खिलाडियों और 84 कोचों को सांस्थानिक सम्मान पुरस्कार देकर सम्मानित किया है और शायद यह जतलाने का प्रयास किया है की साई भारतीय खेलों की खैरख़्वाह है और अपने खिलाडियों और कोचों को भरपूर सुविधा और सम्मान देता है।
उन कोचों और खिलाडियों को सांस्थानिक पुरस्कार मिला है जिनका प्रदर्शन पिछले चार सालों में सराहनीय रहा है। लेकिन विभाग के सेवानिवृत और अन्य कोच कह रहे हैं कि उनकी सेवाओं कि कोई कीमत क्यों नहीं लगाई गई। भले ही कुछ एक लाडले कोचों को हर प्रकार से लाभ मिला लेकिन ज्यादातर ऐसे हैं जिनको उपेक्षा और दुत्कार ही मिली। ऐसे कोच कह रहे हैं कि फिर फिर अपनों को रेबड़ी बांटी गई हैं और सम्मानितों में से ज्यादातर वे हैं जोकि अधिकारियों के सगे हैं और जी हुजूरी जिनका पेशा रहा है।
आरोप लगाने वाले अपने विभाग और खेल मंत्रालय से पूछ रहे हैं कि जब अपने कोचों को खेल अवार्ड दिए जा रहे है, विभाग भी उन्हें सम्मानित करने लगा है तो विदेशी कोच किसलिए बुलाए जा रहे हैं? क्यों उन पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं? एक तरफ देश के कोच विदेशियों को ज्यादा भाव देने से हैरान परेशान हैं तो दूसरी तरफ उनके घाव पर द्रोणाचार्य खेल अवार्ड का मरहम भी लगाया जा रहा है।
कुछ नाराज कोच अपना नाम न छापने कि शर्त पर कह रहे हैं कि सांस्थानिक सम्मान पाने वालो में से ज्यादातर नेता मंत्रियों के करीबी और साई अधिकारीयों के मुंह लगे हैं। कई वफादार सम्मान पा गए हैं और बाकी को नकार दिया गया है |
खैर , आरोप प्रत्यारोप तो लगते रहेंगे लेकिन सवाल आज भी वही है कि हम अपने कोचों को हलकी फुलकी लाली पोप कब तक चटाते रहेंगे? क्यों उनके अनुभव और ज्ञान का समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा? और क्यों काबिल कोचों को पीछे धकेला जा रहा है?
कुछ असंतुष्ट कह रहे हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन विभाग की सेवा में लगा दिया, कई अच्छे खिलाडी तैयार किए लेकिन उन्हें कभी भी किसी सम्मान के काबिल नहीं समझा गया। दूसरी तरफ जिन कोचों ने अपना दाइत्व निभाने कि बजाय बड़े अधिकारीयों की चापलूसी में वक्त बिताया उन्हें हर तरह का लाभ मिला। कुछ को यह भी शिकायत है की सिर्फ पिछले चार सालों के सेवा काल के लिए ही पुरस्कार क्यों दिए जा रहे हैं। उन्हें कहीं न कहीं गहरी राजनीति नजर आती है।
साई के कुछ पूर्व द्रोणाचार्य प्राप्त कोच और सेवा निवृत अधिकारीयों के अनुसार कोचों को सम्मानित करने की योजना पुरानी है| 2001 में इस मुद्दे पर लम्बी बातचीत हुई थी । कुछ साल बाकायदा सम्मान बांटे भी गए । लंबे अंतराल के बाद फिर से विभाग को समझ आई है । उम्मीद है कि यह सिलसिला बराबर चलता रहना रहेगा।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |