भारतीय मुक्केबाजी फेडरेशन ने पहले ही तय कर लिया था कि इस्ताम्बुल में 4 से 19 दिसंबर तक होने वाली विश्व मुक्केबाजी में 70 किलो वर्ग को छोड़ राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के विजेताओं को ही भाग लेने भेजा जाएग। एक भार वर्ग को इसलिए अलग रखा गया क्योंकि इसमें टोक्यों ओलम्पिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना भाग लेती है। लेकिन इस स्पेशल ट्रीटमेंट को देश कि उभरती मुक्केबाज अरुंधति चौधरी ने चुनौती दे दी है और वह लवलीना को ट्रायल के लिए ललकार रही है। उसका मानना है कि यदि लवलीना सचमुच श्रेष्ठ है तो मुझे हरा कर साबित करे।
यह सर्वविदित है कि किस प्रकार हमारी स्टार मुक्केबाज मेरी काम के एकाधिकार के चलते लगभग आधा दर्जन उभरती प्रतिभाओं की बलि दी गई । अब एक और चैम्पियन लड़की ने रिंग में शानदार प्रदर्शन के बाद रिंग के बाहर भी लड़ाई जारी रखने का बिगुल बजा दिया है। हिसार में संपन्न हुई राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में उसने न सिर्फ गोल्ड जीते अपितु बेस्ट बॉक्सर का सम्मान भी पाया है, जिसके। दम पर उसने लवलीना से दो दो हाथ करने की ठानी है। लेकिन फेडरेशन लवलीना का बचाव कर रही है और उसने एकतरफा घोषणा कर डाली है की लवलीना कोई ट्रायल नहीं देगी उसे सीधे वर्ल्ड चैम्पियनशिप में उतरने के लिए हरी झंडी दिखा दी गई है।
मुक्केबाजी के जानकारों को पता है कि किस प्रकार मेरीकाम ने फेडरेशन कि आड़ में मनमानी का खेल खेला। भले ही मेरी ने विश्व खिताब और ओलम्पिक कांस्य जीता लेकिन उसने अपने भार वर्ग में कभी किसी प्रतिभा को पनपने का मौका नहीं दिया। मज़बूर फेडरेशन बस मुंह ताकती रही और पिंकी जांगड़ा, सरिता और निकहत ज़रीन जैसी प्रतिभाएं उभरीं, चमकीं और फेडरेशन के दोगले मानदंडों के चलते बर्बाद हो गई। मेरीकाम अभी डटी रहना चाहती हैं लेकिन उनके इस आचरण से कई लड़कियों का खेल भविष्य चौपट हो चुका है और शायद एक और लड़की एक अन्य ओलम्पिक पदक विजेता कि ऊंची पहुँच का शिकार होने जा रही है।
जब कभी एशियाड या ओलम्पिक खेलने के मौके आए मेरीकाम ने ट्रायल के लिए ना नुकुर किया जिसमें फेडरेशन ने हमेशा उसका साथ दिया। यहां तक आरोप लगाया जाता है की यदि बड़े प्रतिरोध के बावजूद ट्रायल हुआ तो फेडरेशन पर मिली भगत करने जैसे आरोप लगाए गए । हैरानी वाली बात यह है की लगातार उम्र बढ़ने के बावजूद भी हमारी श्रेष्ठ महिला ग्लव्स नहीं टांग रही और अपने से आधे उम्र की लड़कियों को मौका नहीं दें चाहती। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इस मनमर्जी में फेडरेशन का समर्थन आज भी उसके साथ है।
हाल के घटनाक्रम से तो यही लगता है कि एक और चैम्पियन महिला ने फेडरेशन से टकराने का फैसला कर लिया है| उसने सीधे सीधे कह दिया है की लवलीना के साथ हाथ आजमाने का मौका दिया जाए और जो भी जीते उसे आगे भेजा जाए । वरना वह कोर्ट का दरवाजा खड़खड़ाने जा रही है| अरुंधति के अनुसार यदि उसके साथ न्याय नहीं हुआ तो उसकी जैसी कई चैम्पियनों का दिल टूट जाएगा और शायद बहुत सी प्रतिभाएं लड़ना छोड़ दें । लेकिन उसने फेडरेशन की ना के बाद भी लड़ने का फैसला किया है।
कुछ पूर्व मुक्केबाजों और अन्य खेलों के ओलम्पियनों के अनुसार यदि देश चैम्पियन पैदा करना चाहता है और ओलम्पिक पदक तालिका में सम्मान जनक स्थान चाहता है तो श्रेष्ठ का चयन जरूरी है। ओलम्पिक पदक जीतने पर खिलाडियों को करोड़ों दिया जा रहा है, उनके तमाम नखरे उठाए जा रहे हैं और उन्हें वह सब मिल रहा है जोकि एक उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति आजीवन मेहनत के बाद भी नहीं पा सकता । सवाल यह पैदा होता है कि मेरी और लवलीन को स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों दिया जाए?
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |