यहाँ खोलनी पड़ती हैं आँखेंरोशनी के लिए
सूर्य उदय होने से ही उजाले नहीं हो जाएँगे
जहां चीनी का स्वाद भागया है चींटियों को वो नेता रूपी मक्कड़ जाल में फँसते जाएँगे
जहां दिखावा ही सिर्फ़ बना हो अस्त्र वस्त्र
वो भौतिक सुख साधनों को ही निभा पायेंगे
जहां चाहत पैसा अय्याशी व ख्याति की हो
वो गीता के उपदेशों को कहाँ समझ पायेंगे
जहां आडंबर अहंकार का हो बोल बाला
उनको दर्पण में सब क्षीण ही नज़र आयेंगे
जहां तर्क ,ख़ुशहाली,भाईचारा में कमी हो
वहाँ आपस की तकरार को कैसे बचाएँगे
जहां प्रपंच,राजनीति,अमंगल,अधर्म होगा
वहाँ सनातनधर्म का परचम कैसे लहरायेंगे
जहां काम क्रोध मद लोभ का वर्चस्व होगा
वहाँ कर्तव्य पराकाष्ठा को कैसे निभायेंगे
समय की पुकार है वेदों ग्रंथों को अपनाओ
निष्काम भाव सत्यता का दीपक जलाओ
रास्ता तुम्हारा कितना ही बर ख़िलाफ़ हो
रास्ता वो ही चुनो जो सीधा और साफ़ हो
सुनील की कलम से
(Views are personal. This is an opinion piece and the views expressed are the author’s own. The saachibaat.com neither endorses nor is responsible for them.)
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Sunil Kapoor |