अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार माना है। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से यह निर्णय देते हुए 1967 में अपने ही फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। कोर्ट ने 18 साल से चली आ रही इस कानूनी लड़ाई में एएमयू के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि इसे अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
विवाद की शुरुआत 2005 में हुई, जब एएमयू ने मेडिकल के पीजी कोर्सेस में 50% सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कीं। इस फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की गई, और 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को रद्द कर दिया। इसके बाद एएमयू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मामला 2019 में 7 जजों की संवैधानिक बेंच को भेज दिया गया।
कोर्ट का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में माना कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा इस आधार पर नहीं छीना जा सकता कि उसे एक कानून के तहत स्थापित किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि संस्थान की स्थापना और उसकी मंशा की जांच की जानी चाहिए। अगर स्थापना अल्पसंख्यक समुदाय के लिए हुई हो, तो इसे अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए।
1967 के फैसले को पलटते हुए
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर एएमयू को मान्यता दी थी, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। लेकिन अब 57 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का समर्थन किया है।
यूनिवर्सिटी का इतिहास और इसके अल्पसंख्यक दर्जे की लड़ाई
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1920 में सर सैयद अहमद खान के प्रयासों से हुई थी, जिनका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था। 1967 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दर्जा छीने जाने के बाद 1981 में केंद्र सरकार ने कानून में बदलाव कर इसे अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया था। हालांकि, 2005 से शुरू हुई कानूनी लड़ाई के कारण यह मामला विवादित रहा।
अदालत का फैसला- संतोष और निराशा
एएमयू के इस फैसले से समर्थकों में खुशी का माहौल है। एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद शोएब ने इस फैसले का स्वागत किया और इसे “सफलता की ओर बढ़ता कदम” बताया। वहीं, कुछ पुरानी पीढ़ियों ने इसे संतोषजनक नहीं बताते हुए कहा कि यह फैसला अंतिम नहीं है, क्योंकि मामले को तीन जजों की बेंच के समक्ष पुनः प्रस्तुत किया गया है।
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Ms. Pooja, |