यह जरूरी नहीं कि अच्छा खिलाड़ी ही अच्छा कोच हो सकता है या जिसने कोई भी खेल गंभीरता से नहीं खेला वह कोच का दायित्व बखूबी नहीं निभा सकता। यदि ऐसी कोई शर्त होती तो नांबियार जैसा साधारण एथलीट पीटी ऊषा सी महान एथलीट कैसे तैयार कर पाता? कैसे गुरु हनुमान जैसा फक्कड़ गुरु द्रोणाचार्य कहलाता ? लगभग सौ अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान पैदा करने वाले गुरुजी
के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि उन्हें कोई वरदान प्राप्त था और अनुशासन के चलते उन्होंने विश्व विख्यात पहलवान तैयार किए। वे ना तो नामी पहलवान थे और ना ही कोई डिग्री डिप्लोमा प्राप्त थे। इस कड़ी में कुछ और नाम भी शामिल हैं जिन्होंने टीम खेलों में दर्जनों खिलाड़ियों को फर्श से उठा कर अर्श तक पहुंचा दिया। फुटबाल कोच रहीम, क्रिकेट कोच आचरेकर, हॉकी द्रोणाचार्य बलदेव सिंह की उपलब्धियों को खेल जगत बखूबी जानता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में भारतीय खेल उद्योग ने काबिल और समर्पित कोच पैदा करना शायद बंद कर दिया है। आज ऐसे कोच देश के खेल खिलाड़ियों को सिखा पढ़ा रहे हैं, जिन्होंने कभी कोई खेल नहीं खेला । बस कोचिंग का फर्जी डिग्री डिप्लोमा हासिल कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम सम्मान कमा रहे हैं और भारतीय खेलों को पिटे हुए खिलाड़ी दे रहे हैं।
देश की खेल उपलब्धियों पर सरसरी नजर डालें तो तमाम खेलों की प्रगति की रफ्तार संतोष जनक नहीं है। ओलंपिक में 6 – 7 पदक जीतने के मायने यह नहीं कि हमारे खेल तरक्की कर रहे हैं। जिस अनुपात में साधन सुविधाएं बढ़ी हैं और विदेशी कोचों पर करोड़ों बहाए जा रहे हैं उसे देखते हुए यही कहा जाएगा कि हमारा कोचिंग सिस्टम फैल हो गया है और धड़ाम से गिर पड़ा है । विदेशी कोचों ने कुछ खेलों में रिजल्ट दिए हैं लेकिन अपने काबिल और जानकार कोच मौके की तलाश में बुढा रहे हैं या बर्बाद हो रहे हैं।
लेखक को कुछ ऐसे गुरु खलीफाओं से मिलने और उनका दुखड़ा सुनने का अवसर मिला है, जोकि अच्छे खिलाड़ी रहे, खेल मैदान को अलविदा कहने के बाद उभरते खिलाड़ियों को सिखाने पढ़ाने का सिलसिला शुरू किया लेकिन झूठ और फरेब पर टिके सिस्टम से टकराने से पहले ही टूट गए। यही नाकाम और उपेक्षित कोच अपना दुखड़ा रोते हुए कहते हैं कि उन्हें फर्जी और नकली कोचों ने कभी पनपने नहीं दिया।
एक सर्वे से पता चला है कि हॉकी, फुटबाल, एथलेटिक, बास्केट बॉल, वाली बॉल, हैंडबॉल, तैराकी, जिम्नास्टिक, जूडो, कराते , कुश्ती , कबड्डी आदि खेलों में ऐसे गुरु घंटाल हावी हैं जिनका उस खेल से कभी कोई लेना देना नहीं रहा। कोचिंग का यही फर्जीवाड़ा भारतीय खेलों को लील रहा है। खेल संघ, खेल प्राधिकरण और शायद खेल मंत्रालय भी सब कुछ जानते हुए अंजान बने हुए हैं।
Rajender Sajwan, Senior, Sports Journalist |