जी.एन. साईबाबा: न्याय के संघर्ष का अंत, लेकिन प्रेरणा अमर

rajiv kumar 18

Delhi: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता जी.एन. साईबाबा का बीते शनिवार यानी, 12 अक्टूबर 2024 को 57 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका निधन गॉल ब्लैडर हटाने की सर्जरी के बाद कुछ प्रॉब्लम होने के कारण हुआ. बता दें कि साईबाबा, जो 90% विकलांग थे, ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताया, जहां उन्हें अमानवीय परिस्थितियों और काफी ज्यादा शारीरिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।

बताया जाता है कि साईबाबा की गिरफ्तारी और सजा को देशभर में आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्हें यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत गिरफ्तार किया गया था, और कई वर्षों तक जेल में रखा गया, जहां उन्हें उचित चिकित्सा सुविधाएं नहीं दी गईं। यह विडंबना है, कि जबकि बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों के दोषियों को बार-बार पैरोल दी जाती रही, साईबाबा को अपनी गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के बावजूद यह सुविधा नहीं मिली।

संघर्ष और एकजुटता का प्रतीक है साईबाबा का जीवन
साईबाबा का जीवन संघर्ष और एकजुटता का प्रतीक रहा। उन्होंने अपनी शारीरिक स्थिति के बावजूद न केवल अकादमिक उपलब्धियों को हासिल किया, बल्कि सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के लिए एक मुखर आवाज भी बने रहे। उनकी कविताएं और पत्र उनकी असाधारण इच्छाशक्ति और संघर्ष को दर्शाते हैं। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और समाज के कमजोर वर्गों के लिए लड़ते रहे।

डीयू के RLA कॉलेज में पदस्थ थे साईबाबा
राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के शिक्षक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वे छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थे और उन्होंने हमेशा समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों का समर्थन किया। हालांकि, गलत सजा के बाद उन्हें उनके पद से हटा दिया गया, और बरी होने के बाद भी बहाल नहीं किया गया. जी.एन. साईबाबा की असामयिक मृत्यु ने एक बार फिर देश में न्यायपालिका और सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर किया है। उनके जीवन और संघर्ष हमें प्रेरित करते हैं कि हम एक ऐसे भारत की परिकल्पना करें जो संवैधानिक मूल्यों और मानवाधिकारों का सम्मान करता हो।

साचीबात परिवार की ओर से उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उनके परिवार को इस दुखद घड़ी को सहने की शक्ति प्रदान करें।

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Pooja Kumari Ms. Pooja,
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