क्यों बीमार है भारतीय फुटबॉल!

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देर से ही सही अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) नींद से जागती नजर आ रही है। अब इसे सच माना जाए या दिखावा लेकिन पिछले कुछ दिनों में एआईएफएफ फुटबॉल में सुधार को लेकर गंभीर नजर आ रही है। सभी राज्य इकाइयों को कैलेंडर के हिसाब से चलने के निर्देश भी दिए जा रहे हैं। लेकिन महज कुछ राज्यों में लीग आयोजन, आई-लीग और आईएसएल जैसे आयोजन की खानापूर्ति करने से भारतीय फुटबॉल सुधर जाएगी? देश के फुटबॉल जानकारों और पूर्व फुटबॉलरों के अनुसार जो कुछ चल रहा है सिर्फ दिखावा और खानापूर्ति है। एक सर्वे में आज की भारतीय फुटबॉल को पूरी तरह से नकार दिया गया है।
इस संवाददाता ने कई पूर्व खिलाड़ियों, कोचों, रैफरियों और फुटबॉल से जुड़े विशेषज्ञों से बातचीत के बाद पाया है कि भारतीय फुटबॉल को ग्रासरूट से सुधारने की जरूरत है, क्योंकि हमारी फुटबॉल की जड़ों को कीड़े लग चुके हैं। नतीजन देश में फुटबॉल दिन- प्रतिदिन, हफ्ता दर हफ्ता, साल दर साल, मर रही है। जितने भी प्रयास किए जा रहे हैं, वो नाकाफी रहे और बीमारी बढ़ती जा रही है।
बंगाल, पंजाब, हरियाणा, यूपी, महाराष्ट्र, गोवा, दिल्ली, उत्तराखंड, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, झारखंड , हिमाचल आदि प्रदेशों के पूर्व चैम्पियनों, राज्य फुटबॉल इकाइयों के सदस्यों, वर्तमान खिलाड़ियों और फुटबॉल प्रेमियों से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि फुटबॉल फेडरेशन और राज्य एसोसिएशन गंदी राजनीति, धोखेबाजों, अवसरवादियों और भ्रष्ट लोगों के हाथों बर्बाद हो रही हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार तमाम राज्य इकाइयों की बागडोर ऐसे लोगों के हाथ में है, जो कभी भी खिलाड़ी नहीं रहे लेकिन सब-जूनियर, जूनियर, सीनियर और अन्य आयु वर्ग की टीमों का चयन उनके इशारे पर होता है। अध्यक्ष से लेकर निचले पायदान का पदाधिकारी खिलाड़ियों के चयन में सौदेबाजी कर रहे हैं।
दूसरी बड़ी बीमारी उम्र का फर्जीवाड़ा है। लाख कोशिशों के बाद भी दो से चार-पांच साल बड़े लड़के-लड़कियां टीमों का हिस्सा बनाए जा रहे हैं। चयन समितियों में ऐसे लोग हैं जो खुद कभी खिलाड़ी नहीं रहे। इतना ही नहीं साल दर साल साल दर साल ‘डी’ ‘सी’ ‘बी’ ‘ए’ लाइसेंस कोच पैदा हो रहे हैं। इसमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जिन्होंने कभी राज्य स्तरीय फुटबॉल तक नहीं खेली।
अर्थात पदाधिकारी धोखेबाज और फ्रॉड कोच को कुछ आता जाता नहीं और खिलाड़ी नाकारा और ऊंची पहुंच वाले बाप का बेटा। यह गोरखधंधा पिछले कई सालों से खूब फलफूल रहा है और आज हालात विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गए हैं। बेशक, ऐसे मामलों की जानकारी फेडरेशन को है लेकिन जरूरत गंभीरता दिखाने की और गुनहगारों को सजा देने की है। वरना भारतीय फुटबाल का भला होता दिखाई नहीं देता।

Rajendar Sajwan

Rajender Sajwan Rajender Sajwan,
Senior, Sports Journalist
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